समग्रवाद क्या है ? (What is holism? )

मानव, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, हवा, जल, प्रथ्वी, सूर्य, चाँद-तारे और अनेकानेक आकाशगंगाओ से मिलकर यह ब्रम्हांड और ऐसे अनेकों समान्तर ब्रम्हांडो से मिलकर यह पदार्थगत अस्तित्व बना है. इसमें अभौतिक या ऊर्जागत घटकों को भी मिला दें तो अंतरिम परिणाम को हम समग्र अस्तित्व या केवल अस्तित्व कह सकते हैं | अस्तित्व का अर्थ है कि जो है |  

इस सम्पूर्ण अस्तित्व से संवाद करने के लिए हमारी इन्द्रियां बनीं है. इन इन्द्रियों द्वारा किया गये संवाद का प्रतिफलन या परिणाम हमारा इस अस्तित्व के साथ अनुभव कहलाता है. जैसे स्वाद एक अनुभव है जो हमें जीभ से किसी पदार्थ के संपर्क में आने से होता है. स्पर्श भी ऐसा ही एक अनुभव है जो हमारी त्वचा से किसी के संपर्क में आने से होता है.

ज्यादातर हमारे सभी अनुभव टुकड़ों में समझे जाते हैं. ध्वनि कान का, दृष्टी आँखों का आदि | एक अनुभव और भी होता है जो सभी इन्द्रियों और मन का सम्मलित होता है, इसे अस्तित्व का समग्र अनुभव कहते हैं, इसे ही परमज्ञान, मोक्ष, या समाधी भी कहा गया है | इसे मैं समग्रवाद का मूल मानता हूँ | समग्रवाद अर्थात “अस्तित्व के जुड़ाव को अनुभूत करने की चेष्टा और इस अनुभव के आधार पर जीवन जीना तथा सभ्यता विकसित करना |”

समग्रवाद एक अनुभववाद है. इसमें विचार, शब्द, परंपरा आदि से उपर अनुभव का महत्त्व है | इसलिए समग्रपंथ की कुल शिक्षा, प्रशिक्षण एवं कार्यशैली अस्तित्व के समग्र अनुभव को प्राप्त होने की है | समग्रवाद का अर्थ है सम्पूर्ण अस्तित्व के जुड़ाव के अनुभव की चेष्टा | समग्रपंथ आपको उस अनुभव को प्राप्त करने की प्रेरणा देने का काम करता है और सहायता करता है लेकिन अंतिम अनुभव तो आपको स्वयं को ही करना है | शक्तिपात, समग्रध्यान, भक्ति आदि आपके सहयोग के लिए हैं इनकी अंतिम सफलता आप पर ही निर्भर करती है | समग्रपंथ ऐसे अनुभव प्राप्त किये लोगों का समूह है जो आगे भी और लोगों की अनुभव को प्राप्त करने में मदद करे तथा समाज कल्याण का कार्य भी करे | जब ऐसे अनुभवसंपन्न लोगों से समाज व सभ्यता की नीव रखी जाएगी तभी वह उन्नत व सुखी हो सकेगी | आज कोई भी समाज इन दोनों में से कोई एक ही प्राप्त कर पा रहा है |

तोड़कर समझने की पद्धति का उपयोग किसी अनुभव को समझाने के लिए तो किया जा सकता है लेकिन वह अनुभव करवाया नहीं जा सकता. अस्तित्व का वास्तविक अनुभव तो उसे इखट्टे, समग्ररूपेण अनुभव करने में ही है लेकिन वो अनुभव इतना आत्यंतिक है कि उसे किसी दुसरे को ठीक-ठीक जैसा वो है वैसा समझा पाना किसी भी भाषा या शब्द में असंभव है इसलिए उसे समझाने के लिए ही तोड़कर समझाने की दृष्टी का उपयोग किया गया है. लेकिन उस विधा में ये सुधार करना जरुरी है कि हम ये समझा सकें कि समग्र अनुभव तक कैसे पंहुचा जाए. सम्पूर्ण अस्तित्व का जोड़ का नाम ही परमात्मा है | सभी चल-अचल सृष्ठी का समग्र अनुभव ही समाधी है, परमबोध है, परमज्ञान है |